गुरु भक्त काली बाई की कहानी | Kali Bai Biograpy Hindi
आदिवासी समुदाय भील के सोमा भाई के घर में वीर काली बाई का जन्म जून 1935 में माता नवली की कोख से हुआ। मात्र 12 वर्ष की उम्र में इस क्रांतिकारी बाला ने 19 जून 1947 को जागीरदारों व अंग्रेजों के शोषण के विरूद्ध बहादुरी की एक जोरदार मिसाल कायम कर आदिवासी समाज में शिक्षा की अलख जगाई।
Kali Bai Biograpy Hindi : वीरांगनाओ की गाथाओ को जब भी इतिहास के पन्नो पर सहेजा जाएगा तो सबसे पहले स्मृति नन्ही सी कालीबाई की आएगी। विद्रोह का यह बिगुल 19 जून , 1947 को डूंगरपुर के रास्तापाल विधालय में बजा। राजस्थान सेवा संघ की और से गाँव-गाँव में शिक्षा के प्रचार-प्रसार की विशुध्द भावना से स्कूल खोले गए थे। भोगीलाल पंड्या के नेतृत्व में नानाभाई खांट पूरी निष्ठां के साथ इस अभियान में जुटे थे।
निरकुंश सत्ता को यह कैसे स्वीकार्य होता की भोले-भाले भील शिक्षा प्राप्त करके चैतन्य और जागरूक बन साके। इसी लिए डूंगरपुर मजिस्ट्रेट और सुपरिटेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस , फोजियो के साथ रास्तापाल की पाठशाला बंद करवाने पहुंच गए। स्कूल में नानाभाई खांट और एक अध्यापक सेंगाभाई थे।
स्कूल बंद न करने पर मास्टर सेंगाभाई को सैनिकों ने मारकर अधमरा कर दिया। इस पर भी उनका जी नहीं भरा तो उन्होंने उनको जीप से बाँधा और घसीटते हुए ले जाने लगे। घटनास्थल पर सैकड़ो लोगो की भीड़ इकट्ठा हो रही थी पर दबे-कुचले , दयनीय लोगो में इतनी हिम्मत कहा की शासको के विरुध्द आवाज निकाल सके।
अचानक भीड़ को चीरते हुए एक नन्ही बालिका दौड़कर आगे आई। अभी-अभी व घास काटते हुए आ रही थी और हाथ में घास काटने की दांतली थी बालिका नहीं जानती थी कि कैसे उन दानवों के हाथो से अपने गुरु को छुड़ाए। थोड़ी देर में वह जीप के पीछे दौड़ती रही फिर हाथ में पकड़ी दांतली का ध्यान आया। एक झटके से उसने मास्टर जी की रस्सी को जीप से अलग कर दिया। सरकारी सैनिक और अधिकारी सभी स्तब्ध रह गए , जीप रोककर लड़की को चितावनी दी। लड़की हट जा नहीं तो गोलियों से भून दी जाओगी। लड़की ने उपेक्षा से देखा , मास्टर जी के सर को अपनी गोद में रखा और आसपास के लोगो को पानी लाने को कहा। अवज्ञा अपमान से बोखलाए फौजियों में कहा इतना धीरज था कि इस साहसी बाला को झेल सके। लिहाजा बन्दुक से निकली चन्द गोलिया और नन्ही बालिका को अपना शिकार बना गई। लेकिन वे इस छोटी सी जान से नहीं जीत सके।
जिस जीवन को वे शक्ति के बल पर अपनी मुठ्ठी में कैद समझ बैठे थे वह तो अपना नाम , अपनी कीर्ति और अपनी गाथा अमर कर गई और साथ ही अपने निरक्षर , पीड़ित और शोषित साथियो के मन में वैचारिक चेतना की अलख जगा गई । खून से लथपथ उस नन्ही बालिका का नाम था कालीबाई।
भीलो ने ढोल बजाकर हथियारों से लैस अपने साथियो को बुला लिया। सशस्त्र विद्रोह को देखकर सेनिको की रूह कांप उठी और वे भाग खड़े हुए। नानाभाई खांट और कालीबाई की रक्तिम देह को लेकर भीलो का जुलूस 30 मील लम्बी यात्रा कर डूंगरपुर पहुंचा और सम्मान के साथ उनकी अन्त्येष्टि की।
काली बाई का जीवन परिचय भारतीय इतिहास के गौरवशाली अध्यायों में से एक है। काली बाई एक आदिवासी महिला थीं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने साहस और बलिदान के लिए ख्याति प्राप्त की। यहाँ उनके जीवन के मुख्य बिंदु प्रस्तुत हैं:
प्रारंभिक जीवन
जन्म: काली बाई का जन्म राजस्थान के डूंगरपुर जिले में हुआ था। उनका परिवार भील आदिवासी समुदाय से था।
परिवार: काली बाई एक गरीब परिवार में जन्मीं थीं। उनके माता-पिता किसान थे और वे खुद भी परिवार के साथ खेती में हाथ बंटाती थीं।
संघर्ष और बलिदान
शिक्षा: काली बाई ने अपने गाँव के स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उन्हें शिक्षा का महत्त्व पता था और वे अन्य बच्चों को भी शिक्षित करने के प्रयास में लगी रहती थीं।
स्वतंत्रता संग्राम: ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में काली बाई ने सक्रिय रूप से भाग लिया। वे अपने क्षेत्र में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करती थीं।
बलिदान: काली बाई का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनका बलिदान था। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनकी गिरफ्तारी के प्रयास के दौरान, काली बाई ने आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके बलिदान ने आदिवासी समुदाय और स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।
धरोहर और सम्मान
- काली बाई का बलिदान और संघर्ष भारतीय इतिहास में आदिवासी समुदाय के साहस और आत्म-सम्मान का प्रतीक है।
- उनके नाम पर कई स्कूल और संस्थान स्थापित किए गए हैं ताकि उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया जा सके।
काली बाई का जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्प किसी भी व्यक्ति को महान बना सकता है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कैसी भी हो। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
काली बाई के नाम से सरकारी योजना
प्रदेश सरकार द्वारा कालीबाई भील मेधावी छात्रा स्कूटी योजना के माध्यम से अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अल्पसंख्यक श्रेणी की छात्राओं को स्कीम लाभ दिया जाता हैं।
12 वीं क्लास में अच्छे अंक अर्जित करने वाली बालिकाओं को स्कूटी अथवा नकद 40 हजार रु की राशि इस योजना में देय हैं। योजना में अब सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं को भी शामिल कर लिया हैं। 7 अगस्त 2021 को अशोक गहलोत ने इस भील बाला के नाम पर स्कीम का शुभारंभ किया था।
FAQ.
कालीबाई स्कूटी योजना कब शुरू हुई?
- कालीबाई भील मेधावी छात्रा स्कूटी योजना 2022
कालीबाई के गुरु का नाम क्या था ?
- सेंगाभाई
काली बाई का जन्म कब हुआ ?
- जून 1935
काली बाई के पिता का क्या नाम था ?
- सोमाभाई