महाराजा गंगा सिंह का जीवन परिचय
maharaja ganga singh hindi महाराजा गंगा सिंह का जन्म 13 अक्टूबर, 1880 ई. में हुआ था। 31 अगस्त, 1887 को बीकानेर के राज्य सिहासन पर बैठे। इनके राज गद्दी पर बैठने के 17 दिन बाद ही इनके पिता महाराज लालसिंह का देहांत हो गया। गंगा सिंह का जन्म राजपूतों के प्रमुख राठौड़ वंश में हुआ था और उन्होंने 1888 से 1943 तक बीकानेर के पूर्व महाराजा के रूप में कार्य किया। उन्हें एक दूरदर्शी शासक के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने राज्य में आधुनिक सुधार लाए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, वह ब्रिटिश इंपीरियल वॉर कैबिनेट के एकमात्र गैर-ब्रिटिश और गैर-श्वेत सदस्य थे
गंगा सिंह की शिक्षा
1889 में महाराजा गंगा सिंह को अजमेर के मेयो कॉलेज में शिक्षा प्राप्ति हेतु भेजा गया व पंडित रामचंद्र दुबे को इनके साथ ही रखा गया। 1894 तक महाराजा ने मेयो कॉलेज से लौटने पर शासन संबन्धी ज्ञान मि. इजर्टन ने दिया। थोड़े ही समय में ये पूर्ण परिश्रमी और योग्य शासक बन गए। 1896 ई. में राज्य में पलाना में कोयले की खान का पता लगा जिससे 1898 ई. में कोयला निकलने का काम शुरू हुआ।
गंगा सिंह की सैनिक शिक्षा
महाराजा गंगा सिंह ने 1898 ई. में देवली की छावनी में कुछ समय तक सैनिक शिक्षा प्राप्त की। सनं 1898 में महाराजा गंगासिंह की आयु 18 वर्ष की होने पर राजपुताना के एजीजी सर ऑर्थर मार्टिंडल ने 16 दिसम्बर, 1898 को बीकानेर में आयोजित एक बड़े दरबार में बीकानेर राज्य का सम्पूर्ण अधिकार सौंपा।
छप्पनिया अकाल में गंगा सिंह द्वारा राहत कार्य
1899-1900 में राज्य में भीषण अकाल ( छप्पनिया अकाल ) पड़ा। अकाल राहत कार्यो के तहत गजनेर झील खुदवाई गई। अकाल साथ-साथ विशूचिका की भंयकर महामारी फैली। महाराजा गंगासिंह ने बहुत से अकाल रहत कार्य किये थे लेकिन अकाल और इस दैवी आपत्ति से संन 1891 की जनसख्या की अपेक्षा 1901 में लगभग 1/3 आबादी कम हो गई। भारत सरकार ने अकाल समय महाराजा गंगासिंह द्वारा होने वाले प्रजा-हितेषी कार्यो से प्रसन्न होकर इन्हे प्रथम श्रेणी का केसरे हिन्द स्वर्ण पदक भेट किया।
गंगा सिंह का चीन युद्ध में शामिल होना
भारतीय नरेशो में से केवल महाराजा गंगासिंह ही चीन युध्द में स्वयं सम्मिलित हुए थे। बड़ी तत्परता के साथ इस युध्द में भाग लेने के कारण उन्हें के.सी.आई.ई. (नाईट कमांडर ऑफ़ दी इंडियन एम्पायर ) का ख़िताब तथा चाइना वार मेडल से सम्मानित किया गया।
गंगा सिंह द्वारा लालगढ़ पैलेस निर्माण
महाराजा गंगासिंह ने अपने पिता महाराज लालसिंह की स्मृति में राजधानी में लालगढ़ पैलेस बनवाया था। यहाँ उन्होंने अपने पिता की सफ़ेद संगमरमर की सुन्दर प्रतिमा स्थापित की जिसका उद्घाटन 24 नवम्बर, 1915 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग्ज द्वारा किया गया। यह महल लाल पत्थर से बना है। सितम्बर, 1924 में महाराजा गंगासिंह ने जिनेवा में लीग ऑफ़ नेशन्स के अधिवेशन में भाग लिया।
गंगा सिंह द्वारा गंग नहर निर्माण
राज्य में सतलज नदी से नहर ( गंग नहर ) लाने की योजना की आधारशिला फिरोजपुर हैडवर्क्स पर 5 सितम्बर, 1921 को महाराजा गंगासिंह द्वारा राखी गई। 1927 में इसका कार्य पूर्ण हुआ तथा 26 अक्टूबर, 1927 को वॉयसरॉय लार्ड इरविन द्वारा शिवपुर हैडवर्क्स पर गंगनहर का उद्घाटन किया गया। यह नहर फिरोजपुर (पंजाब ) के निकट हुसैनीवाला में सतलज नदी से निकली गई है।
बीकानेर में गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम का निर्माण
बीकानेर में गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम महाराजा गंगासिंह ने अपने शासन के 50 वर्ष पुरे होने की स्मृति में बनाया गया। इसका उद्घाटन 5 नवम्बर, 1937 को वायसरॉय लॉर्ड लिनलिथगो ने किया।
महाराजा गंगासिंह ने गंगानिवास दरबार हॉल व विक्रमनिवास दरबार हॉल बनवाया। 2 फ़रवरी, 1943 को महाराजा गंगासिंह का बम्बई में निधन हो गया। महाराजा गंगासिंह को आधुनिक सुधारक के रूप में याद किया जाता है।
महाराजा गंगा सिंह के बारे में अन्य जानकारी
गंगा सिंह जी ने बीकानेर की "ऊटो की सेना" जिसे गंगा रिसाला भी कहा जाता है, के साथ प्रथम विश्वयुद्ध व द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया था और गंगा रिसाला ने ओटोमन साम्राज्य को हराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1918 में हुए पेरिस शांति सम्मलेन में गंगा सिंह जी ने भाग लिया और 1919 में हुई वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने वाले वो एक मात्र भारतीय राजा थे। पेरिस शांति सम्मलेन से लौटते वक्त उन्होंने अंग्रेजो को रोम नोट लिखा, जिसमे उन्होंने अंग्रेजो से भारतीयों को स्थानीय स्वशासन देने की मांग की थी।
महायुद्ध समाप्त होने के बाद अपनी पुश्तैनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो काम किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते। 1913 में उन्होंने एक चुनी हुई जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया।
1922 में एक मुख्य न्यायाधीश के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया,जिससे बीकानेर न्यायिक सेवा के क्षेत्र में इस प्रकार की पहल करने वाली पहली रियासत बनी, अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और जीवन-बीमा योजना लागू की, निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाईं, और पूरे राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया।
1927 में वे ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और उसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, 1929 में ‘इम्पीरियल वार केबिनेट’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1920 से 1926 के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच 1924 में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। चीन के बक्सर विद्रोह को दबाने के लिए, महाराजा गंगा सिंह जी को अंग्रेजो ने चीन युद्ध पदक और, 1899 में पड़े भीषण छपनिया अकाल में अच्छे प्रबंधन के कारण, केसर ए हिंद की उपाधि से विभूषित किया गया। पंजाब से गंग नहर बीकानेर में लाने के लिए महाराजा को कलयुग का भगीरथ भी कहा जाने लगा।
1898 में एनी बिसेन्ट द्वारा बनाये गए, बनारस हिन्दू कॉलेज को जब महामना मदन मोहन मालवीय जी ने 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बनाना चाहा तो उसके लिए बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी ने सर्वाधिक आर्थिक सहायता प्रदान की। मदन मोहन मालवीय उनके इस योगदान से इतने प्रसन्न हुए की, जब गंग नहर का उद्धघाटन किया गया तब वे न सिर्फ गंग नहर के उद्धघाटन में उपस्थित थे बल्कि उन्होने मंत्र भी पढ़े, इतना ही नहीं पूर्व महाराजा गंगा सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के 1929 से 1943 तक चांसलर भी रहे हैं।
महाराजा गंगा सिंह को उनके योगदान और सेवा के लिए उनके जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान मिले।
नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया (केसीएसआई): महाराजा गंगा सिंह को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश क्राउन को उनकी असाधारण सेवा और समर्थन के लिए इस सम्मान से सम्मानित किया गया था। केसीएसआई वीरता के सर्वोच्च रैंकिंग आदेशों में से एक था। ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य.
नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर (जीसीआईई): बाद में उन्हें नाइट ग्रैंड कमांडर के पद पर पदोन्नत किया गया, जो ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर के भीतर एक उच्च स्तर है। इस पदोन्नति ने उनके महत्वपूर्ण योगदान और नेतृत्व को मान्यता दी।
महाराजा गंगा सिंह को ये उपाधियाँ और सम्मान उनकी सैन्य सेवा और गंगा नहर के निर्माण और उनके परोपकारी प्रयासों सहित बीकानेर रियासत के आधुनिकीकरण और विकास में उनके प्रयासों की मान्यता में दिए गए थे। वे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान उनके महत्व और प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं।
FAQ.
1. महाराजा गंगा सिंह कौन थे?
- महाराजा गंगा सिंह 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में बीकानेर रियासत के एक प्रमुख शासक थे। उन्हें बीकानेर के आधुनिकीकरण और विकास में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
2. महाराजा गंगा सिंह का जन्म कब हुआ था?
- महाराजा गंगा सिंह का जन्म 3 अक्टूबर 1880 को हुआ था।
3. महाराजा गंगा सिंह बीकानेर की गद्दी पर कब बैठा?
- वह अपने पिता महाराजा लाल सिंह की मृत्यु के बाद 1888 में बीकानेर की गद्दी पर बैठे।
4. महाराजा गंगा सिंह की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ क्या हैं?
- महाराजा गंगा सिंह को कई उपलब्धियों के लिए जाना जाता है, जिनमें बीकानेर के शुष्क क्षेत्र में पानी लाने के लिए गंगा नहर का निर्माण, बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उनकी सैन्य सेवा शामिल है।
5. गंगा नहर का क्या महत्व था?
- महाराजा गंगा सिंह द्वारा शुरू की गई गंगा नहर एक प्रमुख सिंचाई परियोजना थी जो सतलज नदी से बीकानेर तक पानी लाती थी। इस नहर ने बंजर भूमि के बड़े क्षेत्रों को उपजाऊ कृषि क्षेत्रों में बदल दिया, जिससे क्षेत्र की कृषि और अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ।
6. प्रथम विश्व युद्ध में उनकी क्या भूमिका थी?
- महाराजा गंगा सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बीकानेर कैमल कोर का नेतृत्व किया, जो ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा था। युद्ध में उनके नेतृत्व और सेवा ने उन्हें पहचान और सम्मान दिलाया।
7. क्या महाराजा गंगा सिंह को कोई उपाधि या सम्मान प्राप्त हुआ?
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उनकी सेवा के लिए, उन्हें नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द स्टार ऑफ़ इंडिया (KCSI) की उपाधि दी गई और बाद में नाइट ग्रैंड कमांडर (GCIE) में पदोन्नत किया गया।
8. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में उनका क्या योगदान था?
- महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर में स्कूलों और अस्पतालों की स्थापना को बढ़ावा दिया, अपनी प्रजा के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार किया।
9. महाराजा गंगा सिंह का निधन कब हुआ?
- 2 फरवरी, 1943 को उनका निधन हो गया।
10. महाराजा गंगा सिंह को आज कैसे याद किया जाता है?
- महाराजा गंगा सिंह की विरासत को बीकानेर में याद किया जाता है, जहां विकास में उनका योगदान अभी भी स्पष्ट है। उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में जाना जाता है जिन्होंने इस क्षेत्र को बदल दिया और राजस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बने हुए हैं।