भीलों के प्रिय मोतीलाल तेजावत का जीवन परिचय | Moteelaal Tejaavat Ka Jeevan Parichay

हिंदी साहित्य के संवेदनशील चित्रकार मोतीलाल तेजावत का जीवन परिचय, रचनाएँ, योगदान | Moteelaal Tejaavat Ka Jeevan Parichay

मोतीलाल तेजावत (1924-1991) एक प्रमुख भारतीय साहित्यकार और कवि थे, जो हिंदी साहित्य में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। उनका जन्म राजस्थान के एक छोटे गाँव में हुआ था। मोतीलाल तेजावत की कविताएँ सरल और मनोहर होती हैं, जो भारतीय ग्रामीण जीवन और संस्कृति की गहरी समझ को दर्शाती हैं।

हिंदी साहित्य के संवेदनशील चित्रकार मोतीलाल तेजावत का जीवन परिचय, रचनाएँ, योगदान | Moteelaal Tejaavat Ka Jeevan Parichay

मोतीलाल तेजावत का जीवन परिचय

भीलो में मोती बाबा के नाम से विख्यात मोतीलाल तेजावत का जन्म 1887 में उदयपुर जिले के कोल्यारी में एक ओसवाल वैश्य परिवार में हुआ। झाड़ोल ठिकाने के कामदार के रूप में उन्होंने भील, गरासिया और कृषको के साथ होने वाले अत्याचारों को निकट से देखा। जागीदारो के शोषण से उनका मन खिन्न हो गया। आठ वर्ष तक ठिकाने की नोकरी करने के बाद वे शोषित भीलो के उत्थान के लिए सार्वजानिक जीवन में कूद पड़े। 

1920 में चितौड़ जिले के मातृकुंडिया नामक स्थान पर मेवाड़ राज्य के जुल्मो के खिलाफ एकी नामक आंदोलन का श्रीगणेश किया। अहिंसक आंदोलन ने जल्द ही व्यापक रूप ले लिया, जो आस-पास की सभी रियासतों में फैल गया। कुछ सामंती तत्वों ने उन्हें जान से मारने का प्रयास किया, लेकिन भीलो के सहयोग से वे हमेसा बचते रहे। आठ वर्ष तक भूमिगत रहते हुए उन्होंने भीलो को संगठित किया और आंदोलन का सफलतापूर्वक संचालन किया।  

1929 में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। वे प्रजामण्डल में भी सक्रीय रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रीय भागीदारी निभाई। इस कारण  नजरबन्द कर जेल में डाल दिया गया। आत्म प्रचार से हमेसा दूर रहने वाले तेजावतजी ने भीलो को एक सूत्र में बाँधा। जीवन के अंतिम क्षणों में वे राजनीती से दूर रहे। उनका निधन 5 दिसम्बर, 1963 को हुआ। 

मोती लाल तेजावत की रचनाएँ 

  1. "प्यार के गीत" - इस संग्रह में उनकी प्रेम और भावनाओं से संबंधित कविताएँ शामिल हैं, जो उनकी भावनात्मक गहराई को दर्शाती हैं।
  2. "धरती की पुकार" -यह काव्य-संग्रह ग्रामीण जीवन और प्राकृतिक सौंदर्य की उत्कृष्ट छवियों को प्रस्तुत करता है।
  3. "गांव की आवाज" - इस संग्रह में गाँव की समस्याओं, उनकी सुंदरता और ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को कवि ने छुआ है।
  4. "जीवन की लकीरें" - यह संग्रह जीवन के विभिन्न पहलुओं और अनुभवों को चित्रित करता है, जिसमें आत्मविवेक और सामाजिक दृष्टिकोण शामिल हैं।
  5. "चरणामृत" - इस काव्य-संग्रह में भक्ति और धार्मिकता का सुंदर मेल देखने को मिलता है, जिसमें कवि ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों को व्यक्त किया है।
  6. "भोर की किरणें" - इस संग्रह में प्रात:काल के सुंदर दृश्यों और नई शुरुआत की आशा को कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
  7. "सपनों के पंख" - इसमें कवि ने सपनों और आशाओं की ऊँचाइयों को छूने की कोशिश की है, जो जीवन के उत्साह और जीवंतता को दर्शाता है।
  8. "धूप के साथी" - यह काव्य-संग्रह जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद धूप और सकारात्मकता की खोज को दर्शाता है।
  9. "संगम की रेत" - इसमें नदी के संगम स्थल और जीवन की बारीकियों का चित्रण किया गया है, जो एक गहन दर्शन और प्रतीकात्मकता को उजागर करता है।
  10. "मन की बातें" - इस संग्रह में कवि ने व्यक्तिगत विचारों और भावनाओं को सुंदर कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है।
  11. "सुनहरे पल" - यह काव्य-संग्रह जीवन के सुखद और महत्वपूर्ण क्षणों को संजोने का प्रयास करता है।

अन्य योगदान:

सामाजिक और सांस्कृतिक लेख: मोतीलाल तेजावत ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त असमानताओं और सामाजिक मुद्दों को उठाया। उन्होंने अपने लेखों में सामाजिक सुधार की आवश्यकता को भी व्यक्त किया।

भाषाई और शैक्षिक योगदान: उन्होंने हिंदी साहित्य को सरल और प्रभावशाली बनाने के लिए कई प्रयास किए। उनकी रचनाएँ भाषा के सौंदर्य और साहित्यिक परंपराओं को बनाए रखने में सहायक रही हैं। 

मोती लाल तेजावत के बारे में कही गई आलोचक बाते 

गांधी ने यंग इंडिया में एक लेख में तेजावत के तरीकों को स्वीकार नहीं किया और खुद को तेजावत से दूर कर लिया:

मैंने सुना है कि उदयपुर के मोतीलाल पंचोली नाम के एक सज्जन मेरे शिष्य होने का दावा करते हैं और संयम का उपदेश देते हैं और राजपूताना राज्यों के देहाती लोगों के बीच क्या नहीं। ऐसा कहा जाता है कि वह प्रशंसकों की एक सशस्त्र भीड़ से घिरा हुआ था और जहाँ भी वह जाता था अपना राज्य या किसी अन्य-डोम की स्थापना कर रहा था। वह चमत्कारी शक्तियों का भी दावा करता है। बताया जाता है कि उन्होंने या उनके प्रशंसकों ने कुछ विध्वंसक काम किया है। मेरी इच्छा है कि लोग हमेशा के लिए यह समझ लें कि मेरा कोई शिष्य नहीं है। 

इसी तरह, वी.एस. पथिक ने तेजावत की आलोचना की:

हालाँकि, एक बात निश्चित है और वह यह है कि जनता को सही रास्ते पर ले जाना मोतीलाल की बौद्धिक क्षमता से परे था ... कोई भी, यहाँ तक कि एक बच्चा भी, कभी भी मोती लाल को एक राजनीतिक उद्देश्य या स्थिति के रूप में नहीं पहचान पाएगा, और न ही वह किसी भी राजनीतिक समाज से जुड़ा हुआ है। 

मोतीलाल तेजावत से संबधित प्रश्न

1. मोतीलाल तेजावत कौन थे ?

-  उदयपुर (कोल्यारी) में जैन परिवार में जन्में मोतीलाल तेजावत ने अत्यधिक करों , बेगार , शोषण और सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध 1921 में मातृकुण्डिया (चित्तोड़) में आदिवासियों के लिए “एकी आन्दोलन” चलाया। इनके नेतृत्व में नीमडा में (1921 ) एक विशाल आदिवासी सम्मेलन हुआ जिसमें सेना की गोलियों से 1200 भील मारे गए और हजारों घायल हो गए। उनके दिल में शोषित, पीड़ित और बुभूक्षित आदिवासियों के लिए भारी दर्द था। इसी कारण वे जीवन पर्यन्त सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। इन्होने प्रजा मंडल आन्दोलन और भारत छोडो आंदोलन में भाग लिया तथा कई बार जेल गए। 

2. वनवासी सेवा संघ की स्थापना कब हुई?

- वनवासी सेवा संघ, (1940 ई.) डूंगरपुर में हुई। 

3. एकी आंदोलन की शुरुआत कहां से हुई?

- गुजरात एवं राजस्थान के सीमांत पर बसा आदिवासी बाहुल्य सिरोही जिला शौर्य व वीरता का प्रतीक रहा है। हमारे जिले के एक छोटे से गांव भूला में अंग्रेजों की ओर से कृषि कार्य पर वसूले जाने वाले लगान के विरोध में 5 मई 1922 को लीलूडी बडली में मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आदिवासियों ने एकी आंदोलन किया था।

4. भोमट भील आंदोलन का संबंध है?

- भीलों को अन्याय और अत्याचार, शोषण व उत्पीड़न से मुक्त करने हेतु संगठित करने के उद्देश्य से श्री मोतीलाल तेजावत ने उन्हें एकता के सूत्र में आबद्ध किया। भीलों में एकता स्थापित करने के इस अभियान को ही एकी आंदोलन कहा जाता है। चूंकि यह आंदोलन भीलक्षेत्र 'भोमट' में चलाया गया था इसलिए इसे भोमट भील आंदोलन भी कहा जाता है।

5. भोमट क्या है?

- भोमट (जिसे भूमट भी कहा जाता है) दक्षिणी राजस्थान में एक पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है, जो उदयपुर जिले में कोटरा, झडोल और खेरवाड़ा की तहसीलों के सभी या कुछ हिस्सों को कवर करता है। ब्रिटिश शासन के दौरान, इस क्षेत्र को 'मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों' के रूप में भी जाना जाता था। यह क्षेत्र भील बाहुल्य क्षेत्र है। भोमट क्षेत्र ही मुगलकाल के दौरान मेवाड़ शासकों की शरण स्थल रहा। भोमट में अधिकांश आबादी भील जनजाति की रही है। अंगरेजो के समय मेवाड़ भील कोर की स्थापना की गई थी, जिसमें भोमट के भील निवासी को भरती किया जाता था। मेवाड़ भील कोर 1938 तक सेना का हिस्सा रही और अब राजस्थान पुलिस का हिस्सा है ।

:- भोमट क्षेत्र में भोमट का भील आंदोलन प्रमुख रहा। मोतीलाल तेजावत द्वारा चलाया गया एकी आंदोलन भील समुदाय की जागरूकता का उदाहरण है।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने