स्वामी केशवानंद का जीवन परिचय | Svamee Keshavaanand Ka Jeevan Parichay

स्वामी केशवानंद का जीवन परिचय, शिक्षा और संन्यास, स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधारक के रूप में योगदान, जीवन के घटनाक्रम |  Svamee Keshavaanand Ka Jeevan Parichay

स्वामी केशवानंद भारती (12 मार्च 1883 – 13 सितंबर 1972) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं। राजस्थान के सीकर जिले के एक जाट परिवार में जन्मे, स्वामी केशवानंद ने कठिन परिस्थितियों के बावजूद न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया बल्कि शिक्षा और सामाजिक सुधारों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

स्वामी केशवानंद ने 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने कई साल जेल में बिताए और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी निष्ठा साबित की।

उनके जीवन और कार्यों की व्यापकता और प्रभाव ने उन्हें भारतीय समाज में एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया, और उनकी स्मृति आज भी शिक्षा, सामाजिक सुधार और साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में जीवित है।


स्वामी केशवानंद का जीवन परिचय, शिक्षा और संन्यास, स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधारक के रूप में योगदान, जीवन के घटनाक्रम |  Svamee Keshavaanand Ka Jeevan Parichay

स्वामी केशवानंद का जीवन परिचय 

स्वामी केशवानंद का जन्म 12 मार्च 1883 को राजस्थान के सीकर जिले के मगलूना गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम बिरमा था। उनके पिता, ठाकरसी, एक ऊँट-चालक थे और उनका परिवार हिंदू जाट समुदाय से संबंधित था। जब बिरमा की उम्र सात साल थी, उनके पिता की मृत्यु हो गई और परिवार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने लगा। 1899 में अकाल के कारण बिरमा की माँ की मृत्यु हो गई, और बिरमा को जीविका की तलाश में पंजाब जाना पड़ा।

शिक्षा और संन्यास

पंजाब में बिरमा ने संस्कृत सीखने की इच्छा व्यक्त की और उदासीन संप्रदाय के महंत कुशलदास से संपर्क किया। महंत ने उन्हें संन्यास लेने की सलाह दी, जिससे वे संस्कृत सीखने के योग्य हो सकें। 1904 में, बिरमा ने संन्यासी बनकर "स्वामी केशवानंद" नाम ग्रहण किया और साधु आश्रम फाजिल्का में शिक्षा प्राप्त की।

स्वतंत्रता संग्राम

स्वामी केशवानंद ने 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और इसके लिए दो साल जेल में भी रहे। 1930 में, उन्हें कांग्रेस की गतिविधियों का प्रभार दिया गया और उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया, लेकिन गांधी-इरविन समझौते के अनुसार जल्द ही रिहा कर दिया गया।

समाज सुधारक के रूप में योगदान

स्वामी केशवानंद ने समाज सुधार के कई महत्वपूर्ण कार्य किए:

शिक्षा: उन्होंने 300 से अधिक स्कूल, 50 छात्रावास, और कई पुस्तकालयों और संग्रहालयों की स्थापना की। विशेष रूप से, उन्होंने ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया को बंद होने से बचाया और वहां एक संग्रहालय भी स्थापित किया।

हिंदी प्रचार: स्वामी केशवानंद ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कई प्रयास किए, जैसे कि 'नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना और हिंदी पुस्तकें प्रकाशित करना।

सामाजिक सुधार: उन्होंने अस्पृश्यता, अशिक्षा, बाल विवाह, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सक्रिय रूप से काम किया। उन्होंने 1947 में भारत के विभाजन के दौरान घायल मुसलमानों की सहायता की और उनके लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था की।

स्वामी जी के जीवन के घटनाक्रम 

  • 1883 - पौष संवत 1940 में ठाकरसी और सारां देवी के घर बीरमा (स्वामीजी का बचपन का नाम) गाँव मगलूणा, जिला सीकर राजस्थान के ढाका परिवार में जन्म।
  • 1888 - मगलूणा छोड़कर पिता के साथ रतनगढ़ शहर में माली मोहल्ले में ऊँट के सहारे जीवनयापन प्रारम्भ।
  • 1890 - पिता की मृत्यु के कारण अपने गाँव मगलूणा वापस आये जहाँ गायें चराने लगे।
  • 1891 - गायें चराते समय भेड़ियों से प्रत्यक्ष सामना।
  • 1892 - मगलूणा छोड़कर अपनी माताजी कि मौसी के यहाँ हंसासर-हामूसर (रतनगढ़) रहकर गायें चराने लगे।
  • 1895-96 - अड़सीसर-घड़सीसर (सरदारशहर) में गायें चराना।
  • 1897 - केलनिया (जिला: हनुमानगढ़) चारे पानी की तलास में पहुंचे
  • 1898 - अन्न के अभाव में खेजड़ी पेड़ की छाल, पशुओं की खल और भरूट घास पर जिन्दा रहे।
  • 1899 - एक मात्र सहारा माता सारां के निधन के बाद अनजान रास्तों पर उत्तर की तरफ निकले।
  • 1899-1903 - भटकाव और फिरोजपुर अनाथालय में हिंदी और संस्कृत का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया।
  • 1904 - (संवत 1961) फाजिल्का में उदासी साधू स्वामी कुशलदास का संस्कृत अध्ययन हेतु शिष्यतव ग्रहण किया। इसी वर्ष स्वामी जी ने अख़बार पढ़ना प्रारम्भ किया।
  • 1905 - प्रयाग कुम्भ मेले में महात्मा हीरानंद जी अवधूत ने बीरमा से स्वामी केशवानंद नाम रखा।
  • 1906 - वृन्दावन-मथुरा का भ्रमण।
  • 1907 - तत्कालीन उत्तर पश्चिम प्रान्त, पंजाब, मुल्तान और सिंध का साधु वेश में भ्रमण, क्वेटा भी पहुंचे।
  • 1908 - गुरु-गद्दी की प्राप्ति और मरुस्थल का भ्रमण।
  • 1909 - लाहोर गए।
  • 1910 - नोहर में पं. शिव नारायण शास्त्री से वेदांत दर्शन का अध्ययन।
  • 1911 - फाजिल्का साधु आश्रम में वेदांत पुष्पवाटिका नाम से पुस्तकालय की स्थापना।
  • 1912 - फाजिल्का पंजाब साधु आश्रम में संस्कृत पाठशाला प्रारम्भ की।
  • 1913-15 - भावी योजनाओं हेतु लाहोर, अमृतसर, जालंधर, दिल्ली, आगरा, श्रीनगर, आदि में पुस्तकालयों, वाचनालयों, संग्रहालयों, विश्वविद्यालयों आदि में शिक्षा साधनों के गम्भीर शैक्षणिक अध्ययन हेतु भ्रमण।
  • 1916 - गुरु-गद्दी का त्याग।
  • 1917 - गाँव दानेवाले में तिलक की 'गीता रहस्य' का अध्ययन।
  • 1918 - अबोहर में हिंदी प्रचार-प्रसार शिक्षा हेतु वातावरण तैयार किया।
  • 1919 - दिल्ली के कांग्रेस अधिवेशन में पंडित मदन मोहन मालवीय का भाषण सुना।
  • 1920 - मुक्तसर पंजाब में सत्याग्रह एवं अबोहर में नागरी प्रचारिणी सभा कि स्थापना।
  • 1921-22 - महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ असहयोग आंदोलन में भाग लिया। और दो वर्ष कैद।
  • 1923 - फाजिल्का पुस्तकालय की शाखा के रूप में पुस्तकालय की स्थापना अबोहर में, ....भारतीय साधू ह्रदय नामक पुस्तक प्रकाशित की।
  • 1924 - साहित्य सदन अबोहर की स्थापना, तुलसी जयंती का आयोजन।
  • 1925-26 - स्वामी जी की प्रेरणा से एवं सहयोग से श्रीगंगानगर नवयुवक सार्वजनिक पुस्तकालय, ऐलनाबाद हरयाणा में साहित्य सदन एवं मुक्तसर पंजाब में हिंदी प्रचार मंडल की स्थापना।.... आर्यसमाज के अनेक जलसों में भाग लिया। ....रामेश्वरम में डॉ राजेन्द्र प्रसाद से, आनंद भवन में मोतीलाल नेहरू से, श्री सुरेन्द्र बनर्जी , श्री चितरंजन दस से, मैथिलि शरण गुप्त के घर चिरगांव एवं गांधीजी से साबरमती में भेंट की। केशरी कार्यालय पूना गए।
  • 1927 - 'साइमन कमीशन वापस जाओ' आंदोलन में भाग लिया। ....युवक समिति सिरसा गठित कर पुस्तकालय की स्थापना।
  • 1928 - राजनैतिक कैदियों के हिंदी ज्ञान के लिए पुस्तकें भेजी।
  • 1929 - 15 मई 1929 की बिजली उर्दू साप्ताहिक अख़बार की एक कतरन के अनुसार, स्वामी जी ने शपथ ली कि साहित्य सदन का कर्ज अदा करने से पहले अबोहर एवं साहित्य सदन में पांव नहीं रखेंगे। .... 2 फ़रवरी 1929 को साहित्य सदन अबोहर का उद्घाटन उत्सव।
  • 1930 - स्वतंत्रता आंदोलन में फिरोजपुर जिले के डिक्टेटर बने। पुनः कैद। गांधी इरवन समझौते के तहत कैद मुक्त।
  • 1931 - अबोहर के गाँवों के लिए चलता फिरता पुस्तकालय योजना प्रारम्भ की।
  • 1932 - जाट स्कूल संगरिया के संचालक बने। जाट स्कूल का जीर्णोद्धार।
  • 1933 - 6 जनवरी 1933 को मण्डी डबवाली में हिन्दू हितकारिणी सभा का गठन कर साहित्य सदन की स्थापना। ....अबोहर के प्रसिद्ध हिंदी मासिक पात्र "दीपक" का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • 1934 - 24,25,26 सितम्बर को पंजाब प्रांतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन का नवां अधिवेशन अबोहर में आयोजित किया। ....जाट स्कूल संगरिया में औषधालय की स्थापना।
  • 1935 - शारीरिक शिक्षा की तैयारी हेतु विद्यार्थियों को प्रशिक्षण के लिए बड़ौदा भेजा। ....जाट स्कूल संगरिया हेतु धन संग्रह का भरसक प्रयास।
  • 1936 - जाट स्कूल संगरिया में संग्रहालय के प्रयास प्रारम्भ।
  • 1937 - आयुर्वेद विद्यालय की स्थापना। .... बहावलपुर के चानण गाँव में हरिजन पाठशाला की स्थापना। ....खैरदीन मेहतर को धर्मपाल नाम देकर अपनी शरण में रखा.
  • 1938 - हिंदी सिक्ख इतिहास लिखने की योजना बनाई। ....संग्रहालय की विधिवत स्थापना।
  • 1939 - जाट स्कूल संगरिया में नंदन वन एवं संग्रहालय के भरसक प्रयास।
  • 1940 - जाट स्कूल संगरिया हेतु धन संग्रह के अथक प्रयास एवं संग्रहालय विकास।
  • 1941 - साहित्य सदन अबोहर में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन का 30 वां अधिवेशन आयोजित किया। ....जाट स्कूल संगरिया में सभा स्थल, पशु शाला, विद्यार्थी आश्रम कुंड, व अध्यापक निवास बनवाये।
  • 1942 - जाट स्कूल संगरिया की रजत जयंती मनाई। ....13-14 सितम्बर को सर छोटू राम और के. एम. पन्निकर पधारे। ....विद्यार्थी सम्मलेन का आयोजन। ....मृत्यु भोज विरोधी क़ानून बनाने का अनुरोध, जो बीकानेर सरकार ने मान लिया। ....साहित्य सम्मलेन ने स्वामी जी को साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्रदान की.
  • 1943 - हिंदी साहित्य सम्मेलन की सभी परीक्षाओं का जाट स्कूल को केंद्र बनाया। ...9 अगस्त 1917 में स्थापित जाट विद्यालय संगरिया को हाई स्कूल में क्रमोन्नत करवाया।
  • 1944 - महान मरुभूमि सेवा कार्य योजना लागू की, जिसके अंतर्गत 100 स्कूलों की स्थापना की गयी। संग्रहालय का नामकरण सर छोटूराम स्मारक संग्रहालय।
  • 1945 - महाराजा सार्दूलसिंह जी द्वारा उद्योग विभाग का उद्घाटन। ....अखिल राजस्थान वैद्य सम्मलेन। 5 फ़रवरी को मास्टर तेगरामजी के साथ मगलूणा गाँव गए। ....24 दिसंबर को मरुभूमि सेवा कार्य हेतु कलकत्ता गए।
  • 1946 - नोआखाली के दंगाग्रस्त क्षेत्रों की यात्रा। ....13-14 अप्रेल को रतनगढ़ विद्यार्थी आश्रम की शिक्षा इमारतों का शिलान्यास।
  • 1947 - सांप्रदायिक सद्भावना हेतु अथक प्रयास, जाट स्कूल संगरिया में यह जहर नहीं घुलने दिया। ....अनेक मुसलमानों को बचाया और संरक्षण दिया। 24 मई को बीकानेर छात्रावास का उद्घाटन। मानसरोवर यात्रा। मेघवंश सम्मलेन बीकानेर की अध्यक्षता। जाट स्कूल में संगीत शिक्षा का शुभारम्भ।
  • 1948 - जाट विद्यालय संगरिया का नाम ग्रामोत्थान विद्यापीठ रखा. खिचिवाला सुजानगढ़ शिक्षा सदन की स्वामीजी द्वारा भेजे शिष्य स्वामी नित्यानंद ने नींव डाली। इलाज हेतु बीकानेर गए।
  • 1949 - 4 सितम्बर को भारत सरकार के पुराततव विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. वासुदेव शरण को संग्रहालय व्यवस्थित करने के लिए बुलाया। ....ग्रामोत्थान पाठशाला योजना के तहत मरुभूमि में अनेक पाठशालाएं खुलवाई। ....20 अगस्त 1925 को स्थापित जाट बोर्डिंग हाउस भाद्रा को स्वामी जी ने 28-3-1949 को नवजीवन प्रदान किया।
  • 1950 - नवजीवन प्रेस की ग्रामोत्थान विद्यापीठ में महिला शिक्षा का श्रीगणेश। महिला आश्रम प्रायमरी स्कूल प्रारम्भ। मासिक पत्रिका 'ग्रामोत्थान' का प्रकाशन प्रारम्भ । स्वामी जी ने पटियाला के प्रसिद्ध चित्रकार त्रिलोक सिंह से 8000 रुपये के चित्र ख़रीदे।
  • 1951 - छात्रावास भवन सरस्वती और नवजीवन भवन का निर्माण। ....महाजन में 500 बीघा भूमि दान में प्राप्त कर दो माह का प्रौढ़ शिक्षण शिविर का आयोजन किया।
  • 1952 - राष्ट्रीय संसद के सदस्य बने। (1952 से 1964 तक)।.... जीवन में पहली बार उपचार हेतु क्लोरोमाइस्टीन का प्रयोग किया।
  • 1953 - 1905 से चल रहे चौटाला रोड (संगरिया का पूर्व नाम) का नामकरण संगरिया करवाया।.... 8 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री पधारे। गांधी विद्यामंदिर सरदारशहर की प्रबंध कारिणी के सदस्य बनाये गए। 13 सितम्बर को सांसदों का दल स्वामी जी के कार्यों को देखने आया।
  • 1954 - मरुस्थल में बेसिक शिक्षा स्कूलों, समाज शिक्षा केन्द्रों की स्थापना। ....स्वामीजी द्वारा स्थापित स्कूलों की कुल संख्या 287 हुई। ....11 वर्षों के अथक प्रयासों से सिख इतिहास का प्रकाशन। ....छानी बड़ी (भादरा) में स्कूल की स्थापना में सहयोग। ....महिला आश्रम प्रायमरी स्तर से मिडिल स्कूल में क्रमोन्नत। ....समाज शिक्षा संचालकों के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया।
  • 1955 - हाईस्कूल बहु-उद्देशीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल के रूप में परिवर्तित कराया। ....स्कूल में कृषि संकाय की स्थापना। महाजन में कस्तूरबा महिला ग्रामोत्थान विद्या-पीठ का शुभारम्भ किया। ....उद्घाटन में डॉ. सुशीला नायर पधारी। ....12 अक्टूबर 1955 को सूरतगढ़ में ग्राम छात्रावास का शिलान्यास राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया एवं डॉ सुशीला नायर द्वारा।
  • 1956 - शिक्षक प्रशिक्षण शाला की स्थापना। स्वर्ण मंदिर अमृतसर के स्वर्ण पत्रों के जीर्णोद्धार समारोह के मुख्य अतिथि और उद्घाटन भाषण। ....सोवियत सांस्कृतिक दूत वारान्निकोव पधारे।
  • 1957 - महिला आश्रम को मिडिल स्कूल - हाई स्कूल बनाया। ....पीटर पीर प्रताप (राजा महेंद्र प्रताप) संगरिया पधारे।
  • 1958 - राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा बनारसी दास चतुर्वेदी और ठाकुर देशराज द्वारा सम्पादित स्वामी केशवानंद अभिनन्दन ग्रन्थ उनकी 75 वीं वर्ष गाँठ पर भेंट किया । ....स्वामीजी की प्रेरणा से चौधरी शिवकरण सिंह गोदारा ने अपने पिता की स्मृति में एक लाख रूपया श्रीगंगानगर में कन्या महाविद्यालय की स्थापना के लिए दिए।.... भूदान के प्रणेता विनोबा भावे स्वामी जी के कार्यक्रमों को देखने संगरिया पधारे। ....अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बहु-भाषाविद युगोस्लाविया के सैकल टी. बोर संगरिया पधारे।
  • 1959 - पं. जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री भारत सरकार एवं श्रीमती इंदिरा गांधी का ग्रामोत्थान विद्यापीठ में पदार्पण। ....अमेरिकी सांकृतिक दूत थामस जी. ऐलन पधारे। स्वामी जी मोतिया बिन्द के इलाज के लिए अलीगढ गए।
  • 1960 - कृषि महाविद्यालय की योजना बनाई ।
  • 1961 - शपथ ली कि जबतक कृषि महाविद्यालय चलता न देखलूं संगरिया में पाँव नहीं रखूँगा। ....उनकी प्रतिज्ञा जल्द ही पूर्ण हुई। ....राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ मोहनसिंह मेहता ने स्वयं संगरिया पधार कर कृषि महाविद्यालय की मान्यता प्रदान की।
  • 1962 - कृषि महाविद्यालय प्रारम्भ। ....भारत चीन युद्ध में 4100 रुपये चंदा कर एवं 501 रुपये स्वयं के भत्ते से राष्ट्रीय रक्षा कोष में भिजवाये।
  • 1963 - 15 जनवरी को महाराजा करणी सिंह पधारे।....17 अप्रेल को रामसुभग सिंह जी से कीर्ति स्तम्भ का उद्घाटन करवाया। ....ग्रामोत्थान विद्यापीठ के लिए ईंट-भट्टे की स्थापना।
  • 1964 - सर छोटू राम स्मारक संग्रहालय में क्रन्तिकारी मनमन्त नाथ गुप्त से शहीद कक्ष (लाला हरदयाल कक्ष) का उद्घाटन करवाया।
  • 1965 - शिक्षा महाविद्यालय की स्थापना। भारत दर्शन उप शिक्षा मंत्री भारत सरकार ने उद्घाटन किया। ....डॉ सत्य प्रकाश पुराततव विभागाध्यक्ष राजस्थान सरकार के साथ कालीबंगा का निरिक्षण। 'अध्यापक ही वैद्य- वैद्य ही अध्यापक' नमक मौलिक योजना प्रस्तुत की।
  • 1966 - मथुरा अखिल भारतीय कृषक सम्मलेन के सभापति। ....कन्याओं के लिए सावित्री देवी छात्रावास का उद्घाटन बृज सुन्दर शर्मा शिक्षा मंत्री राजस्थान सरकार द्वारा करवाया।
  • 1967 - जिला सर्वोदय एवं नशा बंदी समिति के अध्यक्ष। चौटाला में हरिजन विद्यालय की स्थापना। ....नशाबंदी, गांधी एवं हिंदी प्रदर्शनी का आयोजन । ....नवम्बर में प्राकृतिक चिकित्सा हेतु जयपुर में।
  • 1968 - कृषि महाविद्यालय में कला और विज्ञान संकाय प्रारम्भ। 9 मार्च को खाद्य-मंत्री जगजीवन राम और राजस्थान के मुख्य मंत्री मोहनलाल सुखाड़िया पधारे। 'शिक्षा संत स्वामी केशवानन्द' नामक पुस्तक का प्रकाशन आचार्य बृज नारायण कौशिक द्वारा।
  • 1969 - अगस्त में टी. बी. के इलाज हेतु चण्डीगढ़ पोस्ट ग्रेजुएट मैडिकल इंस्टीटयूट में भर्ती हुए। चौधरी बंशी लाल और चौधरी देवीलाल खून देने को तैयार हुए। बृज नारायण कौशिक का रक्त स्वामीजी को दिया गया। प्रो. शेर सिंह जी की सहायता से टी. बी. अस्पताल रोहतक में रहे। युग पुरुष गांधी, युवकों के आदर्श नेताजी बोस, सिख गुरु और उनकी वाणियाँ, जम्भेश्वर महाराज का चरित्र और वाणी, सर्व-खाप पंचायत और ग्राम स्वराज नामक पुस्तकें छपवाकर वितरित करवाई।
  • 1970 - सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन एवं शराब तम्बाखू निषेध के प्रचार हेतु 100 पुस्तकालय खोलने का विचार।
  • 1971 - ग्रामोत्थान विद्यापीठ का संशोधित संविधान छपवाया। पूर्व संस्था अबोहर एवं नव स्थापित संस्था कस्तूरबा महिला ग्रामोत्थान विद्यापीठ महाजन की और ध्यान आकृष्ट।
  • 1972 - मद्रास से 9750 रुपये धन संग्रह, कस्तूरबा महिला ग्रामोत्थान विद्यापीठ महाजन में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण, कन्या महाविद्यालय को हायर सेकंडरी स्कूल का रूप प्रदान किया।

सम्मान और स्मृति

स्वामी केशवानंद को 1958 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा "अभिनंदन ग्रंथ" भेंट किया गया। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे (1952-58 और 1958-64)। 13 सितंबर 1972 को उनका निधन हुआ। उनकी स्मृति में, भारत सरकार ने 15 अगस्त 1999 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया और 2009 में राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।

निष्कर्ष

स्वामी केशवानंद भारती का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करता है। राजस्थान के एक साधारण परिवार से उठकर, उन्होंने अपनी दृढ़ संकल्प और अपार मेहनत के माध्यम से समाज में गहरा प्रभाव डाला। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए, उन्होंने असहयोग आंदोलन और अन्य स्वतंत्रता संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाज सुधारक के रूप में, उन्होंने शिक्षा, हिंदी प्रचार और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया। उनके द्वारा स्थापित स्कूल, छात्रावास, और पुस्तकालय आज भी उनकी शिक्षात्मक और सुधारात्मक दृष्टिकोण की गवाही देते हैं। स्वामी केशवानंद का जीवन और उनके कार्य आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं, जो हमें सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। 

FAQ. 

1. स्वामी केशवानंद भारती कौन थे?

- स्वामी केशवानंद भारती एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, और धार्मिक गुरु थे। उनका जन्म 12 मार्च 1883 को राजस्थान के सीकर जिले में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में कई पहल कीं।

2. स्वामी केशवानंद ने स्वतंत्रता संग्राम में कौन-कौन से आंदोलन में भाग लिया?

- स्वामी केशवानंद ने 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद असहयोग आंदोलन में भाग लिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने कई बार जेल की सजा भी भुगती।

3. स्वामी केशवानंद के प्रमुख समाज सुधार कार्य क्या थे?

- स्वामी केशवानंद ने शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जैसे कि 300 से अधिक स्कूलों और 50 छात्रावासों की स्थापना। उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भी कई प्रयास किए और सामाजिक बुराइयों जैसे अस्पृश्यता, अशिक्षा, और बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया।

4. स्वामी केशवानंद का शिक्षा क्षेत्र में क्या योगदान था?

- स्वामी केशवानंद ने कई विद्यालयों, छात्रावासों, और पुस्तकालयों की स्थापना की। विशेष रूप से, उन्होंने संगरिया में ग्रामोत्थान विद्यापीठ की स्थापना की, जो शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

5. स्वामी केशवानंद का अंतिम जीवन और निधन कब हुआ?

- स्वामी केशवानंद का निधन 13 सितंबर 1972 को दिल्ली में हुआ। उनकी स्मृति और योगदान को मान्यता देने के लिए भारत सरकार ने 15 अगस्त 1999 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया और 2009 में राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।

6. स्वामी केशवानंद के सामाजिक और सांप्रदायिक योगदान के क्या उदाहरण हैं?

- स्वामी केशवानंद ने 1947 के विभाजन के दौरान घायल मुसलमानों की सहायता की और उनके लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था की। वे विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भी जाने जाते हैं।

7. स्वामी केशवानंद ने हिंदी भाषा के प्रचार के लिए क्या किया?

- उन्होंने 1920 में पंजाब के अबोहर में 'नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना की और 1933 में एक प्रेस 'दीपक' शुरू किया जो हिंदी सामग्री प्रकाशित करती थी। उन्होंने हिंदी में लगभग 100 पुस्तकों का अनुवाद किया और 1954 में "सिखों का इतिहास" का हिंदी संस्करण प्रकाशित किया।


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